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30 Nov 2025 · 1 min read

*क्या मरना क्या जीना जग में, जीवन खेल-तमाशा (गीत)*

क्या मरना क्या जीना जग में, जीवन खेल-तमाशा (गीत)
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क्या मरना क्या जीना जग में, जीवन खेल-तमाशा

अनजानी हैं राहें सारी, लोग मिले अनजाने
दो दिन साथ रहा बस सब का, लगे लोग पहचाने
फिर खो गए भीड़ में ऐसे, मिलने की कब आशा

पता नहीं क्या पाया जग में, क्या जो हमने खोया
हॅंसी मिली जिसको जीवन में, अगले ही क्षण रोया
सब कुछ पाकर भी मानस में, भीतर भरी हताशा

कोठी-बॅंगला आमदनी पर, दो दिन कुछ इतराते
सुंदरता दो दिन की रहती, फिर सारे मुरझाते
जीवन की गति नहीं एक-सी, पल में तोला-माशा
क्या मरना क्या जीना जग में, जीवन खेल-तमाशा
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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