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12 Mar 2020 · 1 min read

मुक्तक

1.
तुम मुहब्बत के राहों में दर्द उठाए फिरते हो
हम दश्त ए शहर रानाई में चाक-ए-गरेबाँ सिलते हैं
~ सिद्धार्थ
2.
दिल दिया है तो उसमें मुहब्बत भी देना
चश्म दिया है तो चश्म ए शर्म भी देना

गिरे जो कोई जिंदगी के सफ़र में चलते चलते
उठाऊं चूम लूं पेशानी से इतना मुझे तौफ़ीक़ भी देना
~ सिद्धार्थ

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