हुनर -ए-वफ़ा
मोहब्बत को बाज़ार-ए-इश्क़ में ‘पाया’ नहीं जाता,
सुनो, रिश्ता मिला नहीं करता.. रिश्ता ‘बनाया’ जाता है।
नज़र टिकती नहीं जिसकी, उसे क्या ख़ाक दिखेगा,
बिना ठहरे तो कोई दिल.. ‘बसाया’ नहीं जाता।
तेरे नज़दीक हैं कितने, इसी पर क्यूँ इतराते हो ?
घर मे एक फूल ही काफी होता है,यूँ कचरा ‘जुटाया’ नहीं जाता।
हज़ारों मैं भी ला सकता हूँ, ‘प्रबल’ये दुश्वार थोड़ी है,
मगर यूँ भीड़ को दिल में, कभी ‘बसाया’ नहीं जाता।
दरारें आ भी जाएँ तो, ‘मुनासिब’ है उन्हें भरना,
जरा सी बात पर यूँ घर तो गिराया’ नहीं जाता,