एकांतवास
यदि कोई मनुष्य एकांतवास पसंद करता है, तो इसका तात्पर्य यह बिल्कुल भी नहीं, कि वह हमेशा से एकाकी, तन्हा, परित्यक्त अथवा अकेला था अक्सर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह भीड़ से थक चुका होता है लोगों के साथ घुलने-मिलने के हर प्रयास में असफल होने के पश्चात्, जब वह दूसरों को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते स्वयं को ही भूल जाए, जब अपनी अहमियत खो बैठे तब एकांत सिर्फ एक विकल्प नहीं, बल्कि एक ज़रूरत बन जाता है…!