दीयों के मन की व्यथा
संभाल कर उठाना हमे, रात भर खुद को जलाया है।
तेल बाती जलाकर,तुम्हारी दीवाली को सजाया है।।
खुद अंधकार मे रहके,तुमको हमने प्रकाश दिखाया है।
रात भर अकेले रहे हम,पर कोई देखने हमें नआया है।।
बाँटते रहे सबको मिठाईया,हमें तुमने भूखा सुलाया है।
भूखे रहकर भी हमने,तुम्हे भर पेट पकवान खिलाया है।।
समेट कर हमको, तुमने कूड़ेदान का रास्ता दिखाया है।
दिवाळी मनाकर तुमने, मरघट का घर हमे दिखाया है।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम