प्रेम की पराजय : नीत्शे के संग
जब मैं
प्रेम में असफल हुआ
तो टूट गया
दर्द में बिखर गया।
भाग निकला मैं
पागलों की तरह
इक्कीसवीं सदी से
और जा पहुँचा
उन्नीसवीं सदी में
दार्शनिक नीत्शे के पास।
अब मैं
बस नीत्शे के साथ रहूँगा
जो स्वयं भी प्रेम में हारा था
टूट कर
अनगिनत टुकड़ों में बिखर गया था।
~ प्रतीक झा ‘ओप्पी’