सुंदर मानस भाव ले, करिए प्रभु गुण गान।
सुंदर मानस भाव ले, करिए प्रभु गुण गान।
जिससे पावन हो सके, रसना का रस पान।।
सुचिता मन का भाव हो, रसना पर हरि नाम।
पावन करते कर्म जब, कृपा करे घनश्याम।।
जीवन सुरभित तब लगे, जब हो प्रभु में नेह।
ऐसे सज्जन वास से, मंदिर होता गेह।।
मंदिर सा चित कीजिए, समता जहाँ विधान।
समदर्शी सा भाव हो, लोग कहें भगवान।।
“पाठक” चित कोमल सदा, प्रभु चिंतन में लीन।
कृपा नाथ अब कीजिए, शरणागत यह दीन।।
:- राम किशोर पाठक (शिक्षक/कवि)