गुल नहीं इक शरार भी हो तुम
गुल नहीं इक शरार भी हो तुम
बूँद भी आबशार भी हो तुम
जाने क्या नौइयत तुम्हारी है
क्या कोई इंतिशार भी हो तुम
बाग़ का हर निज़ाम तुम से है
तुम खिज़ा भी बहार भी हो तुम
तुम मिरे आस पास रहते हो
और सितारों के पार भी हो तुम
तुम्ही से मैने रंजिशे रक्खी
दिल का मेरे करार भी हो तुम