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5 Oct 2025 · 1 min read

हम तनिक भी न घबराए

घिरे संकट से बहुत पर,
पैर कभी न लड़खड़ाए।
मौत सम्मुख थी खड़ी पर,
हम तनिक भी न घबराए।।

अपना बनकर लोगों ने,
जानें कितना छला हमें।
मेरे अपने संबंधी,
कहते थे मनचला हमें।
सुन अपशब्द अपमान के,
गलत कभी न बड़बड़ाए।

घिरे संकट से बहुत पर,
पैर कभी न लड़खड़ाए।।

जिंदगी ने भी बहुत सी,
विकट परीक्षाएं ली हैं।
आए दिन तरह-तरह से,
हमें यातनाएं दी हैं।
चोट खाईं बहुत ही पर,
पीड़ा से न तड़फडाए।

घिरे संकट से बहुत पर,
पैर कभी न लड़खड़ाए।।

घोर संकट के समय में,
जब सभी ने साथ छोड़ा।
बेवजह ही प्रियतमा ने,
रूठ करके हाथ छोड़ा।
दर्द था दिल में बहुत ही,
नैन पर न डबडबाए।

घिरे संकट में बहुत पर,
पैर कभी न लड़खड़ाए।।

सब ने बरगलाया बहुत,
भगवद्भक्ति को छोड़ दो।
क्या रखा प्रभु भक्ति में है,
प्रभु नाम माला तोड़ दो।
किन्तु कभी भी ईश भक्ति,
पथ से हम न डगमगाए।

घिरे संकट में बहुत पर,
पैर कभी न लड़खड़ाए।।

स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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