हम तनिक भी न घबराए
घिरे संकट से बहुत पर,
पैर कभी न लड़खड़ाए।
मौत सम्मुख थी खड़ी पर,
हम तनिक भी न घबराए।।
अपना बनकर लोगों ने,
जानें कितना छला हमें।
मेरे अपने संबंधी,
कहते थे मनचला हमें।
सुन अपशब्द अपमान के,
गलत कभी न बड़बड़ाए।
घिरे संकट से बहुत पर,
पैर कभी न लड़खड़ाए।।
जिंदगी ने भी बहुत सी,
विकट परीक्षाएं ली हैं।
आए दिन तरह-तरह से,
हमें यातनाएं दी हैं।
चोट खाईं बहुत ही पर,
पीड़ा से न तड़फडाए।
घिरे संकट से बहुत पर,
पैर कभी न लड़खड़ाए।।
घोर संकट के समय में,
जब सभी ने साथ छोड़ा।
बेवजह ही प्रियतमा ने,
रूठ करके हाथ छोड़ा।
दर्द था दिल में बहुत ही,
नैन पर न डबडबाए।
घिरे संकट में बहुत पर,
पैर कभी न लड़खड़ाए।।
सब ने बरगलाया बहुत,
भगवद्भक्ति को छोड़ दो।
क्या रखा प्रभु भक्ति में है,
प्रभु नाम माला तोड़ दो।
किन्तु कभी भी ईश भक्ति,
पथ से हम न डगमगाए।
घिरे संकट में बहुत पर,
पैर कभी न लड़खड़ाए।।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)