कुंडलिया. . . .
कुंडलिया. . . .
रोटी से बढ़कर नहीं, जग में कुछ नादान ।
इसकी खातिर जिस्म का, बिक जाता ईमान ।।
बिक जाता ईमान , धर्म भी लगता छोटा ।
रोटी का जब यार, पेट में होता टोटा ।।
कड़वा बड़ा यथार्थ, बात यह लगती छोटी ।
सच मानो भगवान , बड़ी है जग में रोटी ।।
सुशील सरना /