तुम और मैं
तुम और मैं,
दो अपूर्ण यात्राएँ,
जो वर्षों तक बिखरी रहीं,
कभी दर्द में, कभी प्रतीक्षा में…
कर्म ने हमें सिखाया…
ज़िम्मेदारियाँ निभाना,
त्याग करना,
पर प्रेम का स्पर्श अधूरा रह गया..
अब जब समय ने
अपना दूसरा अध्याय खोला है,
हमारे हाथों को एक कर दिया है,
तो यह मिलन सिर्फ़ साथ रहने का वादा नहीं,
यह है…
पूर्णता का संकल्प…
तुम मुझे स्थिरता देते हो,
मैं तुम्हें गहराई,
तुम्हारे शब्दों में आधार है,
मेरे सपनों में उड़ान…
हमारा घर
सिर्फ़ दीवारों से नहीं बनेगा,
यह बनेगा –
प्रेम से, विश्वास से,
और उस अनंत ऊर्जा से
जो हमें जोड़ती है…
इस जन्म का व्रत है…
अब अधूरापन नहीं,
अब सिर्फ़ पूर्णता..
अब सिर्फ़ हम…