पूर्णिका कैसे लिखें!
✍️पूर्णिका की परिभाषा ✒️
आदरणीय डॉ० सलपनाथ यादव ‘प्रेम’ जी जबलपुर, मध्यप्रदेश के द्वारा शोधित पूर्णिका न्यूनतम पांच नेह व अधिकतम बीस नेह तक में सजा कर कही जाने वाली एक काव्य विधा हैं, जिसमें पहली नेह को प्रारम्भी नेह एवं अंतिम नेह को परिचयी नेह कहा जाता है।
इसमें दो सुधि (पंक्ति) को मिला कर एक नेह रची जाती है, ऊपर की पंक्ति अर्थात नेह की पहली पंक्ति को पूर्ण सुधि और दूसरी पंक्ति को संपूर्ण सुधि कहा जाता है। संपूर्ण सुधि के अंत में परिवर्तनी और स्थानीय लगाकर लिखी जाती है, और जब किसी नेह की संपूर्ण सुधि के अंत में स्थानीय की जगह परिवर्तनी हो, तब इसे स्थानीय विहीन पूर्णिका कहा जाता है। जब पूर्णिका के एक या दो नेह पढ़े जाते हैं तो उसे पूर्णिकांश कहा जाता है। नेह में किसी भी प्रकार का बंधन न होने एवं मात्रा का विशेष ध्यान रखे बिना, बिना अटके सहजता से बोलकर, गाकर पढ़ी जाने लायक ही पूर्णिका होती है।
पूर्णिका दुनिया के हर क्षेत्र, हर विषय, हर प्राणी, हर भाव व भाषा को विषय बना कर कही व लिखी जा सकती है।
अर्थात पूर्णिका कहने/ लिखने के लिए पूर्णिका – कार कोई भी विषय चुनने हेतु स्वतंत्रत होते हैं।।
:- पाण्डेय चिदानन्द “चिद्रूप”
पूर्णिका-कार, वाराणसी, उत्तरप्रदेश