प्रणाम गुरुजन प्रणाम
प्रणाम गुरुजन प्रणाम
आप हैं महापंडित महाज्ञानी
हम बालक नादान
प्रणाम गुरुजन प्रणाम
हम अनभिज्ञ अंजान जहान् से
ना जाने हम कौन कहाँ से
कैसे और क्यों आए यहाँ पे
हम पाषाण मूल मूढ़ थे
दिया आपने ज्ञान—प्रणाम गुरुजन
था मस्तिष्क में घनघोर अंधेरा
कोरा कागज था मन मेरा
जग लगता था ये रैन बसेरा
क्यों होता है कब होता
आज हुई पहचान—प्रणाम गुरुजन
जीवन में अनगिनत सवाल थे
कुछ पहेली मकड़जाल थे
उल्टे-सीधे कितने खयाल थे
सब शंकाएं सुलझ गई
सच्च में आप महान—प्रणाम गुरुजन
“V9द” कहे अहसान आपका
करता है गुणगान आपका
है आशिष ये वरदान आपका
आप ना होते कैसे होता
जीवन पथ आसान—प्रणाम गुरुजन