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4 Sep 2025 · 3 min read

आँकड़ों की जुबानी

///// मस्तूरी : एक संस्मरण /////

भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले में मस्तूरी स्थित है। यह गाँव है तथा ग्राम पंचायत भी है, जो प्रखंड मुख्यालय एवं तहसील मुख्यालय है। विधानसभा क्षेत्र के नाम से भी मस्तूरी जाना जाता है। यह भविष्य में अपार सम्भावनाओं वाला स्थल है।

मस्तूरी विकासखंड का कुल क्षेत्रफल 493.45 वर्ग किलो मीटर है तथा 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 297726 है। मस्तूरी प्रखंड में कुल 173 ग्राम है, जिसमें 172 आबाद ग्राम है।

यह संस्मरण मस्तूरी के बारे में है, इसलिए मस्तूरी के संदर्भ में तथ्यात्मक आँकड़ों पर प्रकाश डालना जरूरी हो जाता है। भारत में प्रत्येक 10 वर्ष के अंतराल में जनगणना होती है। सन 2011 में जनगणना हुई थी। उसके पश्चात 2021 में जनगणना होनी थी। लेकिन कोविड-19 विश्व व्यापी कोरोना महामारी के कारण जनगणना का कार्य नहीं हो सका। अतएव 2011 जनगणना के आँकड़े ही अधिकृत रूप से उपलब्ध है।

सन 2011 की जनगणना के अनुसार मस्तूरी की जनसंख्या 5928 है। इसमें 3064 पुरुष और 2864 महिला है। मस्तूरी गाँव में 1330 घर है। यहॉं कुल साक्षर जनसंख्या 4208 यानी 71% है। इसमें साक्षर पुरुषों की संख्या 2376 यानी 77.54% है तथा साक्षर महिलाओं की संख्या 1832 यानी 63.96% है। मस्तूरी गाँव का औसत अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 14 डिग्री सेल्सियस है।

मस्तूरी गाँव का कुल क्षेत्रफल 115 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ प्रति वर्ग किलो मीटर में लगभग 52 व्यक्ति निवास करते हैं। मस्तूरी गाँव में 1000 पुरुषों पर 935 महिलाएँ हैं। इसे ही लिंगानुपात कहते हैं। यहां प्रति परिवार औसत 4 व्यक्ति निवासरत हैं। मस्तूरी की औसत वार्षिक वर्षा 1155 मि.मी. है। इस गाँव की प्रमुख फसल धान और गेहूँ है। फसलों की सिंचाई खूँटाघाट बांध के पानी से नहरों के द्वारा होती है।

मस्तूरी गाँव का कुल सिंचित रकबा लगभग 92% है। सन 1930 में खूँटाघाट बांध के निर्माण के पूर्व मस्तूरी और आसपास के क्षेत्र की खेती पूर्णत: वर्ष पर निर्भर थी। दादाजी बताते थे कि लगभग 2 से 3 फीसदी खेती की सिंचाई तालाबों से होती थी।

वर्तमान में गाँव के कुल कृषि योग्य धान के रकबे में 82% में रोपाई विधि से खेती होती है। शेष रकबे पर छिड़का या बोता पद्धति से धान की फसल लेते हैं। मस्तूरी में प्रतिवर्ष धान का औसत उत्पादन 24 क्विंटल प्रति एकड़ है तथा रबी फसल गेहूँ का औसत उत्पादन 8 क्विंटल प्रति एकड़ है।

मस्तूरी गाँव के अनेक कृषकों के पास वर्तमान में ट्यूबवेल की सुविधा उपलब्ध है, जिससे फसलों की सिंचाई करते हैं। सन 1985 के पहले किसी के पास सिंचाई हेतु ट्यूबवेल की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।

मस्तूरी गाँव में वर्तमान में वन क्षेत्र नहीं है। मस्तूरी तथा आसपास के गाँवों में बहुतायत में यानी लगभग 46 गिट्टी की खदानें हैं। लगातार पत्थर निकाले जाने से भूमि की आंतरिक संरचना परिवर्तित होकर खोखली होती जा रही है, यह अत्यन्त चिंता का विषय है। पत्थर तोड़ने के लिए बारूद का प्रयोग हो रहा है। इससे कई मकानों की दीवारों में दरारें आ रही हैं। यदि इस पर जल्द रोक नहीं लगाई गई तो भूकम्प से जान- माल के नुकसान का भारी खतरा है।

जिला प्रशासन तथा जनप्रतिनिधियों को इसे संज्ञान में लेकर अविलम्ब रोक लगाने की कार्यवाही करनी चाहिए। बशर्तें कि वे अपने क्षुद्र स्वार्थों से ऊपर उठें। इस जनहित के मुद्दे पर आम जनता को भी आगे आना चाहिए। मीडिया को भी स्वार्थ से परे रहकर मुखर होने की जरूरत है।

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।

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