मेरा जन्म
तुमने मुझे जन्म दिया न जाने किस स्वार्थ बस,
कहते हो जन्म देना आवश्यक हैं न जाने किस स्वार्थ बस।
जन्म आपने दिया पर मैं विद्रोह न कर सका,
जन्म लेना आपके यहां ये मेरा चुनाव न बन सका।
अगर चुनाव होता तो सच में “मैं “जन्म न लेता,
कारण मात्र एक खुद को खोने से बचा लेता।
तुमने मुझे जैसा पाला – पोसा मैं बड़ा हुआ,
तुमने मुझे जैसा खड़ा किया मैं खड़ा हुआ।
हा तुमने दिया मुझे बो सब जो तुम दे सकते थे।
तुमने मुझे, जन्म, अहंकार, वृत्ति, कामना आदि दिए क्योंकि यही दे सकते थे।
हा तुमने मुझे बो सिखाया जो तुम सिखा सकते थे।
तुमने मुझे, तुम्हारी बड़ी जाति, रोते नहीं, बड़ी इज्जत, पद, प्रतिष्ठा आदि क्योंकि यही सिखा सकते थे।
तुमने मुझे सिखाया….
काम कम, दाम ज्यादा से ज्यादा।
मेहनत कम, सुरक्षा ज्यादा से ज्यादा।
तथ्य कम, बकवास ज्यादा से ज्यादा।
शांति कम, दिखावा ज्यादा से ज्यादा।
वास्तविकता कम, बनावटी ज्यादा से ज्यादा।
सत्य कम, प्रतिष्ठा ज्यादा से ज्यादा।
क्योंकि तुम मुझे यही सिखा सकते थे।
तुम्हारी स्वार्थ भरी कामनाएं मुझे दबाती गई,
तुम्हारी अपनापन की नीति मेरे अहंकार को बढ़ाती गई।
हे समाज तुमने वो क्यों न सिखाया, जो सर्वोच्च है।
क्या ये सर्वोच्चता अभी भी तुम्हारे पास हैं?
अगर हैं तो बो सिखाओ अथवा ऐसे अहंकार के पिंडो को मत बढ़ाओ।
अगर तुम सिखा सकते हो तो सिखाओ, सत्य, बोध, ये भूख हमारी हमेशा रहेगी, कारण मात्र एक अज्ञात के साथ अंधी दौड़……….।
तुम्हे लग रहा हैं , मैं बढ़ रहा हूं ।
मुझे लग रहा हैं , मैं मिट रहा हूं।
मेरे “मैं “का अंत ही प्रारंभ है,
प्रारंभ में ही हैं नवीनता,
प्रारंभ में ही हैं विलीनता।
विलीनता में हैं शून्यता,
शून्यता में हैं अनन्ता,
अनन्ता में ही अंत हैं ,
अंत ही प्रारंभ हैं ।
– यथार्थ