*"शाश्वत प्रेम"*
मुरली की तान में जैसे,
छुपा हो राधा का मन,
हर स्वर में झरता रहता है
अनकहा सा कोई स्पंदन।
मोहन की आँखों में बसी
बरसों की प्यास अधूरी,
राधा के होंठों पर ठहरी
शब्दों से भी गहरी दूरी।
वन की हर डाली पर गूँजे
मिलन की मीठी सरगम,
किसी को न कह पाए दोनों
मन की व्याकुल धड़कन।
राधा के आँचल की छाँव में
ठहर गई बंसी की लय,
कान्हा ने मौन में ही रच डाली
प्रेम–कथा अनन्त अमर।
ना समय तोड़े, ना दूरी घटाए,
ये बंधन जन्मों से परे है,
हर सांस में तेरा स्पंदन है,
हर धड़कन में तू मेरे भीतर है।
संयोग बने तो दीप जलें,
वियोग बने तो अश्रु बहें,
पर प्रेम हमारा अटल रहे,
शाश्वत सत्य सा, अनादि–अनन्त रहे।
©® डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”