प्रेम पाती
हे
श्री, प्रिया, प्रियतमा,
वल्लभा, सजनी, सहचरी
“कुशल क्षेम संग”
यह प्रेम पाती सुरक्षित रखना,
जिन क्षणों में, जिन पलों में
हो अवसाद और वेदना
व्यथा हो जब तुम्हें बारम्बार
प्रेम पाती का पुनः अध्ययन करना…
मैं लिख रहा हूँ प्रेम
समर्पित भाव से प्रेम
प्रतिबद्ध प्रेम, प्रबल प्रेम
प्रसून प्रेम, पवित्र प्रेम
पुण्य प्रेम, पुनीत प्रेम
इन शब्दों, इन पंक्तियों के निमित्त से प्रेम
हे प्रिय:-
मैं करता हूँ तुमसे अटल प्रेम
आरंभिक नीहार सा,
नवजात शिशु के यथार्थ विनोद सा प्रेम,
अग्रिम मौक्तिक ओस सा प्रेम,
एक अनंत रत्नाकर सा प्रेम,
अन्तहीन व्योम सा प्रेम,
स्वर्णरश्मि के दिव्य आलोक सा प्रेम,
मैं तुम्हें करता सम्पूर्ण अन्तर्मन से प्रेम….
विदित है तुम्हे…?
तुम:-
सर्वोत्तम ईश्वरीय पारितोषिक हो,
दिनकर की उज्जवल किरण हो,
निशाकर की शीतलता हो,
रत्नाकर के तुम मोती हो,
पवित्र चन्दन की सुवास हो,
आशीर्वाद स्वरूप
विलक्षण वनिता, कामिनी, रमणी हो,
मेरे प्रेम की सृजन तुम,
मेरे प्रेम की उत्पत्ति तुम,
मेरे प्रेम की सृष्टि तुम,
मेरे प्रेम की रचयिता तुम,
मेरे प्रेम की स्रष्टा तुम,
मेरे प्रेम की विधाता तुम,
मैं अपने समग्र स्वप्न
तुम्हें समर्पित करता हूँ,
मैं अपनी सकल चेतन जागृति
तुम्हें समर्पित करता हूँ,
मैं अपने अखिल
दिन, रात, वर्ष, माह, पल, क्षण
सम्पूर्ण अपना जीवन समर्पित करता हूँ…..