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10 Aug 2025 · 1 min read

प्रेम प्रतीक्षा

नील नीलम, नीलवर्ण अंबर तले,
दुग्ध जल मिश्रित
शर्करा रहित पर्वतीय बूटि संग
करो प्रेम प्रतीक्षा

बसंत, ऋतुराज, मधुमास की
श्यामवर्ण गोधूलि में
सुगंधित, सुवासित, सौरभमयि
रमणीय, चित्ताकर्षक, वन कानन में
करो प्रेम प्रतीक्षा

महीधर, शिखर, तुंग
प्रशिक्षित अश्वरोहण के अविचलता संग
बनकर कुँवर युवराज की
असंख्य, अनगिनत, विविध,
चित्ताकर्षक, सुरम्य, कलित, मंजुल संग
करो प्रेम प्रतिक्षा

इन्द्रधनुषी
जलधर, पयोद, अम्बुद के छोर के साथ
गगनचारी स्त्रैण सुरभित के साथ
अश्वपृष्ठ पर सुगंधराज, चंदन की
पुरुषोचित सुवास संग
करो प्रेम प्रतिक्षा

यद्यपि हो विलंब, अतिदेय,
यद्यपि हो शीघ्र अतिशीघ्र
करो प्रेम प्रतिक्षा
सुरम्य, सुसज्जित, संवृत,
केश-कुंतल के मनभावन सुगन्धि संग
करो प्रेम प्रतिक्षा

वाटिका, उद्यान, उपवन
मध्य आकर आसीन होने दो..
ठहरो:-
मत हो विचलित, मत हो व्याकुल
प्रसून, गुल, मंजरी की
शाखाओं पर आसीन होने दो
ठहरो:-
पवित्र, निर्मल बयार मध्य श्वास लेने दो
ठहरो:-
जिस क्षण मंद-मंद वस्त्र
ऊर्वस्थि से हो गगन विहार
उस क्षण की
करो प्रेम प्रतिक्षा

विभावरी, निशा, यामनी संग
पुष्पवाटिका में करो विचरण
स्तन्य-शीतल उदित ज्योत्स्ना, चंद्रप्रभा
निशा की दीप्तिमान, ज्योतिर्मय प्रभा, छवि संग
करो प्रेम प्रतिक्षा

मध्धम-मध्धम नयनपट होने लगें बंद
उस क्षण की करो प्रतीक्षा
जिस पल रात्रि यह कहे,

“युवाम् अतिरिक्ते जीवितव्यम्”,

तुम दोनों की अतिरिक्त कोई जीवित नहीं
कोई संजीव नहीं
कोई जागृत नहीं
उस क्षण प्रेम मोक्ष की ओर
हो चलो अग्रसर
अधीरता व्याग्रता
आकांक्षा, मनोरथ, कामना, ईप्सा, लिप्सा,
का हुआ समापन
धीरज, सब्र, सहनशीलता, अविचलता संग
सूर्य की प्रथम किरण की करो प्रतीक्षा

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