"सिर्फ किरदार काफी नहीं"
“सिर्फ किरदार काफी नहीं”
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कहते हैं किरदार ही
पहचान है इंसान की,
मगर क्या
हर किरदार सच्चा होता है?
जिस्म तो साफ दिखते हैं,
सलीकेदार, सजे-संवरे… पर रूहें?
वे अक्सर ख़ामोश होती हैं,
और उनकी नमी कभी
अश्क बनकर नहीं गिरती।
रूह की गलियों में
जो पछतावे की दस्तक है,
वो सुनना सबके बस की बात नहीं।
कभी-कभी सब कुछ ठीक लगते हुए भी
कुछ टूटा-टूटा सा होता है
वो टूटन…
रूह की नादानी नहीं,
उसकी “नादामत” होती है।
कहां आसान है
उस सच्चाई को जी पाना
जो दिल के आईने में दिखती है।
क्योंकि किरदार बयां करता है
जिस्मों की सदाक़त
आसान कहाँ होती है
रूहों की नदामत
डॉ. फ़ौज़िया नसीम शाद