#10।। परीक्षा का डर (कविता: गुरु को समर्पित)
परीक्षा का डर
(कविता: गुरु को समर्पित)
जब परीक्षा पास में आती,
दिल की धड़कन तेज हो जाती।
न दिन में चैन, न रात को नींद,
सपनों में भी दिखे प्रश्नपत्र की गंध।
कभी लगे याद है सब कुछ,
तो कभी लगे, दिमाग हो गया कुंद।
पेन-पेपर का बनता है रिश्ता,
पर डर में खो जाता है नज़ारा सारा ।।
तभी आते हैं जितेश सर, मुस्कान लिए,
कहते हैं – “बच्चो, घबराओ नहीं, बस पढ़ते रहिए!”
“डर को दोस्त बना लो यारों,
मेहनत से चमकेंगे तुम्हारे सितारे हर बारों।”
उनकी बातें जैसे जादू कर जातीं,
डर की दीवारें धीरे-धीरे गिर जातीं।
होसला बढ़ता, मन में उजाला,
फिर तो लगता – परीक्षा भी एक प्यारा सा हाला।
धन्यवाद उन शिक्षकों को बार-बार,
जो बनते हैं उम्मीदों के पहरेदार।
गुरु आप हैं वो रौशनी की किरण,
जो डर को भी बना दें बच्चों का अपनापन।
✍️📝 जितेश भारती