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10 Nov 2016 · 1 min read

कब हो गई सहर और रात गुज़र गई

देखा है जब से आपको नजर ठहर गई
कब हो गई सहर और रात गुज़र गई

निभाई है बेवफ़ाई तुमने जाने जां
तुम क्या जानो जिंदगी मेरी ठहर गई

यादों के भँवर में मै उलझ कर रह गई
जब से गए हो सनम तुम मै बिखर गई

रखा जो हाथ माँ ने सर पर मिरे यार
खुशियों से आज मेरी झोली भर गई

बाहों में कँवल तेरी इस कदर खो गयी
पलकें भी ना उठी और जिंदगी गुज़र गई

गिरहबंद —
उलफ़त ए मुहब्बत में बेसुध हम हो गए
मौजे नसीम थी इधर आयी उधर गई

बबीता अग्रवाल #कँवल
नसीम – ठंडी हवा

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