Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
17 Jun 2025 · 1 min read

पापा

याद मुझे आती है जब मैं रोता था,
खुद हाथों से दिए निवाले पापा ने ।

गुड़ियों का तो शौक कभी ना था हमको,
अपने सारे खेल सम्भाले पापा ने ।

अपने लिए तो विश्व बैंक ही गुल्लक था,
एक एक सिक्के रोज उछाले पापा ने ।

जब जब डर लगता था हमको रातों में,
अंधियारों में भरे उजाले पापा ने ।

खुद प्लास्टिक के जूते में दिन काट रहे
मुझे दिलाये महंगे वाले पापा ने ।

फटी सीट साइकिल की वो उपहास बने
मुझको लाखों लाख दे डाले पापा ने ।

जिनके जैकेट में तुरपाई छत्तीस थी,
मुझे मंगाए लेदर वाले पापा ने ।

मानस की चौपाई से समझाते थे,
राम सा सारे तम हर डाले पापा ने ।

अब भी जब डर लगता है रो लेता हूँ,
कर डाला अब राम हवाले पापा ने ।

~ धीरेन्द्र पांचाल

Loading...