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1 Feb 2021 · 1 min read

मुहब्बत की निशानी

मुहब्बत की निशानी
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मुहब्बत की निशानी ढूँढता हूँ,
वही अपनी जवानी ढूँढता हूँ।

कभी ख़त तो कभी तस्वीर उसकी,
सभी चीजें पुरानी ढूँढता हूँ।

शहर में, गाँव में, सारे जहाँ में,
छुपा चेहरा नूरानी ढूँढता हूँ।

जो करता था मेरी रातें सुगंधित,
वही मैं रातरानी ढूँढता हूँ।

वही मैं ढूँढता हूँ प्यार उसका,
वही बारिश का पानी ढूँढता हूँ।

भले कंकर हुई है जिंदगानी,
नदी सी मैं रवानी ढूँढता हूँ।

दिलों के जो समुंदर में उठी थी,
वही फिर से सुनामी ढूँढता हूँ।

मिले पुस्तक अगर ‘आकाश’ कोई,
मुहब्बत की कहानी ढूँढता हूँ।

-आकाश महेशपुरी
कुशीनगर, उत्तर प्रदेश.
मो- 9919080399

(“कुछ खत मोहब्बत के” – काव्य प्रतियोगिता)

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