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16 Jun 2025 · 1 min read

उसे मेरे लिए फ़ुर्सत नहीं है

उसे मेरे लिए फ़ुर्सत नहीं है
कहो क्या ये मेरी ज़िल्लत नहीं है

वो हसरत थी मेरी जो जा चुकी है
सो अब दिल की कोई हसरत नहीं है

मोहब्बत पर मुक़दमा थोपना है
गवाहों की कोई क़िल्लत नहीं है

कभी उसको बना पाऊंगा अपना
नहीं ऐसी मेरी किस्मत नहीं है

खफ़ा हूँ और बहुत नाराज़ भी हूँ
मगर उसके लिए नफ़रत नहीं है

बिना उसके मैं जीना सीख लूंगा
वो कोई लत कोई आदत नहीं है

भरी महफ़िल में उसको क्यों पुकारूं
वो औरत अब मेरी औरत नहीं है

-जॉनी अहमद ‘क़ैस’

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