"मनुष्य-योनि"
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हम प्राणी! जग में फिर से आ गये!
इस धरती पर जीवन जीने आ गये।
न जाने कितनी योनि में भटके हम!
अच्छे कर्मों से मनुष्य-योनि पा गये।।
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ईश्वर ने हमें! मनुष्य जीवन दिया है!
हमें! अधर्म छोड़- धर्म कर्म करना है।
जग में जिस उद्देश्य से भेजा गया है!
हमको! उस उद्देश्य की पूर्ति करना है।।
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ये “मनुष्य-योनि” बार-बार ना मिलेगी!
हमें- जीवन में सत-कर्म करना होगा।
मृत्यु पूर्व! अपना उद्देश्य पूर्ण करना है!
मृत्यु बाद! ईश्वर-धाम को जाना होगा।।
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वहां- हमारे कर्मों का मूल्यांकन होगा!
हमारे कर्म के आधार पर निर्णय होगा।
अगली योनि कौन-सी होगी पता नही!
ईश्वर-धाम में अगला जीवन तय होगा।।
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————————-(१८/०७/२०२४).
: रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल*:====:
:====: उज्जैन{मध्यप्रदेश}*:======:
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