चाय
आज इक नया समा, इक नया दौर है!
अपनी बनी चाय का मजा कुछ और है!!
थोडा सा अदरक गुड और हो दालचीनी!
साथ हो तेजपात की खुश्बू भीनी-भीनी!!
डाल लो चाय की पत्ती औ थोडी इलायची!
खुश्बू से पडौसन दौडी आए ललचाई सी!!
“भाभी खास आपके लिए है,नोश फरमाईए!”
कहकर अपना सारा हाले-दिल भी सुनाईए!!
बेगम के मैके जाने का थोडा ग़म दिखाईए!
थोडा हँस-बोल दे ‘शाम का प्रोग्राम बनाईए’!!
झील के उस पार रैस्त्रा मे डिनर पर लेजाईए!
हालेदिल घर पर जो ना कह सके वो सुनाइए!!
बेगम की नाइन्साफियो की फैहरिश्त बताईए!
ना पिघले तो चँद ऑसू का हुनर आजमाईए!!
जो ऑसू पोछने को बढे हाथ,हाथो मे आईए!
एक अदद बोसा लेकर”जाने दीजिए फरमाईए”!!
“काश आप मेरी हमनवा होती” तुरुप चलाईए!
देखिए अगले ही पल गलबँहिया ज़रूर बढाईए!!
कहिए है ना ज़नाब खुद चाय बनाने के फायदे!
भाड मे जाए रस्मो रिवाज़ के सब पुराने कायदे!!
जो सुकू दे दिल और दिमाग को वो आजमाईए!
अब गुरुघँटाल की नसीहत पर गुरुदछिणा चढाईए!!
सर्वाधिकार सुरछित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट,कवि,साहित्यकार
202 नीरव निकुजँ,सिकँदरा,आगरा-282007
मो:9412443093