नाम : बाबिया खातून

नाम : बाबिया खातून
विधा : लघु जीवनी (जीवन परिचय)
मेरा नाम मोहम्मद मतलूब आलम है। मैं ६ अक्टूबर को १९८० ईस्वी को uttar pradesh में पैदा हुआ था । मैं दिखने में अच्छा हूँ और मेरी कद-काठी भी अच्छी है। लेकिन में पढ़ेंगे और पढ़ने वाले में रहता था इसका कई लोग मजाक बनाया करते हैं, जिस वजह से मेरी ज़िंदगी में तकलीफें आती हैं और मैं बहुत परेशान रहता था । लेकिन मैं पढ़ाई-लिखाई, लेखन, वाकपटुता, रचना, कलाकारी, नित्यकार, और गायन जैसी चीजों में उम्दा था
जब मैंने दसवीं कक्षा पास की, तो मैंने प्रथम श्रेणी से परीक्षा पास किया था जिससे मैं अपने घर में बहुत गर्वान्वित महसूस कर रहा था । फिर मैं ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ाई करने लगा , जिस वजह से कई लोग मुझे चिड़ाते थे। वे कहते थे, “यह तो पागल है, यह बेरोजगार ही रहेगा ” लेकिन मैंने हार नहीं मानी और मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी।
जब अर्द्धवार्षिक परीक्षा का समय आया, तो मैंने अपना दमखम दिखाया और अच्छे अंक हासिल किए। फिर वार्षिक परीक्षा में भी मैंने अपना दमखम दिखाया और ग्यारहवीं कक्षा अच्छा स्थान हासिल किया। इसके बाद मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ाई करने लगी, जहाँ भी मुझे कई लोगों ने चिड़ाया। लेकिन मैंने अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित रखा और अधिवार्षिक परीक्षा में नवासी से ६५ प्रतिशत अंक हासिल किए।
जब मेरे दोस्तों ने मुझसे पूछा कि मैंने यह कैसे किया, तो मैंने कहा कि मैंने अपनी पढ़ाई खुद से की है और मैं अब तुम लोगों से बात नहीं करना चाहती। इसके बाद मेरे दोस्तों ने मुझसे माफी मांगी और मैंने उन्हें माफ कर दिया।
फिर मैंने अपनी पढाई जारी रखी और परीक्षा में भी अपना दमखम दिखाया और वार्षिक परीक्षा में भी मैंने अच्छे अंक हासिल किए। जब बारहवीं कक्षा का परिणाम घोषित हुआ, तो मैंने 60 प्रतिशत अंक हासिल किए .
इसके बाद मैंने आईपीएस की तैयारी करनी शुरू करने की सोची आर्थिक हालातों के कारण मुझे सफलता नहीं मिली। लेकिन मैंने हार नहीं मानी और मैंने बीए की परीक्षा अच्छे अंकों से पास किया था । फिर मैंने एसएससी की भर्ती परीक्षा दी लेकिन सफलता ना मिली , इसके बाद मैंने ग्रुप -डी की परीक्षा दी इस बार मैं सफल हुआ और फिर ट्रेनिंग की और तो और सरकारी नौकरी मैंने हासिल की। इसके बाद भी मैंने हार नहीं मानी मैंने लगभग ३ साल तक संघर्ष किया और मुझे स्टेशन मास्टर का पोस्ट चाहिए था शुरू से मुझे मेरे पसंद की पोस्ट मिली चुकी थी और मैं बहुत खुश हुई। मैंने अपनी मम्मी और पापा को यह बात बताई तो मम्मी और पापा खुश हुए और फिर उन्होंने मोहल्ले में मिठाइयाँ बटवाई और मोहल्ले वालों ने मुझसे माफ़ी मांगी और कहा, “हमें माफ़ कर दो बेटा हमारी गलती है ,
हमने तुम्हारी चीज़ों और तुम्हारी मेहनत का मजाक बनाया
इसके बाद मोहम्मद मतलूब आलम ने कविता सुनाई सबको और कहा
अब आप लोग मेरी कविता सुनें ,,
मैंने अपने ज़िन्दगी के झालर को अपने को
अपने रवानी इश्क़ के अदब मे डूबते हम
अपनी ज़िन्दगी के बर्बादी के आलमे
मुलग और मुतबल को हमने समेटकर
रोके बस रखा है ,
नाक़ामयाबी के मुलाकात के मुलाकाती मशरिक
ना था कोई बस मेहनत के चन्द बात में ये किताब
ही थे मेरे बस साथी ,