“हर बात पे रोओगे… तो कौन सहेगा यहाँ…”

“हर बात पे रोओगे… तो कौन सहेगा यहाँ…”
“ये ज़िंदगी है… समझौते का नाम है…”
“हर इंसान… तुम्हारे मन का नहीं होगा…”
“हर लम्हा… तुम्हारे हिसाब का नहीं होगा…”
“कभी नापसंद खाना पड़ेगा…”
“कभी नापसंद लोगों संग मुस्कुराना भी पड़ेगा…”
“ये ज़िंदगी है दोस्त… हर चीज़ पर ‘पसंद’ की मुहर नहीं लगती…”
“कभी हालात… हमें मोड़ते हैं…”
“तो कभी… हमें खुद को मोड़ना पड़ता है…”
“अगर हर बार नाराज़ होओगे…”
“तो लोग तुम्हें… अपनी दुनिया से बाहर कर देंगे…”
“तो थोड़ा झुको…”
“थोड़ा सहो…”
“क्योंकि जो हालात से लड़ना सीख गया…”
“वही वक़्त को जीना भी सीख जाता है…”
“याद रखो…”
“हर जंग तलवार से नहीं जीती जाती…”
“कुछ जंगें… चुप रहकर भी जीती जाती हैं…”