दर्शन,दर्शनशास्त्र, फिलासफी और जीवन -दर्शनशास्त्र

जब तक जीवन-दर्शन, जीवनचर्या, जीवनशैली नहीं बनते हैं तब तक यह सब वैचारिक कबड्डी से बढ़कर कुछ भी नहीं है। लेकिन जीवन के हरेक क्षेत्र में इसका विपरीत हो रहा है। जिसको देखो वही प्रवचन दे रहा है लेकिन प्रवचन में कही गई शिक्षाओं को स्वयं के आचरण में स्थान नहीं देता है। हमारे महापुरुषों की हर अच्छी बात,सीख और उपदेश ने व्यापार का रुप धारण कर लिया है। लगता है कि इन्होंने जनता जनार्दन को बेवकूफ समझ लिया है या फिर बेवकूफ बनाने के लिये ही प्रवचन आदि किये जा रहे हैं। आचरण, चरित्र, जीवनचर्या और जीवनशैली में सुधार से इन्हें कोई मतलब नहीं है।
और देखिये, हमारे वायदाखिलाफी करने वाले नेताओं पर कानूनी कार्रवाई होना चाहिये, लेकिन ऐसा कहीं नहीं होता है। लोकलुभावन घोषणाएं करके सत्ता में आ जाते हैं और बाद में उनको पूरा करने के लिये कुछ भी नहीं करते हैं। जनता यदि विरोध करे तो लाठी और गोलियों से उनका स्वागत किया जाता है। आखिर वायदाखिलाफी करने वाले नेताओं को जेल क्यों नहीं होना चाहिये?जब हरेक ज़ुल्म की सजा निर्धारित है तो नेताओं को खुली छूट किसलिये? यदि वायदाखिलाफी के विरुद्ध कानून बन जायेगा तो अधिकांशतः नेता जेलों में होंगे। आचरण में कथनी और करनी का भेद यहां भी मौजूद है। अधिकांश कानून प्रभावी लोगों के हितार्थ बनाये जाते हैं। जनमानस की कोई चिंता नहीं है।
और देखिये, जनता का ध्यान असल मुद्दों से भटकाने के लिये पांच किलो अनाज फेंक दिया जाता है। और इसे रेवड़ी संस्कृति कहकर दुष्प्रचार भी किया जाता है। वास्तव में यह रेवड़ी संस्कृति नहीं, अपितु राष्ट्र की पूंजी पर सबका अधिकार का सवाल है। यदि व्यवस्था लोकतांत्रिक है तो सबको सुविधाओं को भोगने का अधिकार होना ही चाहिये।पूंजीपति यह न सोचें कि उनकी कमाई केवल उन्हीं की मेहनत का परिणाम है। पूंजीपतियों ने जो अरबों -खरबों कमाकर एकत्र कर लिये हैं, उसमें किसान, मजदूर आदि की भी मेहनत का योगदान है। यदि पूंजीपतियों का योगदान दस प्रतिशत है तो किसान और मजदूर का नब्बे प्रतिशत योगदान है। लेकिन व्यवस्था की तानाशाही बोलने तक नहीं देती है। भारतीय मेहनतकश वर्ग की उसकी कमाई का अधिकांश हिस्सा तो ये पूंजीपति, धर्मगुरु, उच्च- अधिकारी और नेता खा जाते हैं। सारे समानता के प्रवचन और व्याख्यान सिर्फ कागजों, योजनाओं और मंचों तक सिकुड़ कर रह जाते हैं। कोई आवाज उठाये तो उसकी खैर नहीं है।
हरियाणा में सरकारी विद्यालयों में छात्रों की संख्या घटने से विद्यालयों को बंद किया जा रहा है। पिछले एक दशक में हजार के आसपास विद्यालय बंद किये जा चुके हैं। इसके पीछे सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को जिम्मेदार ठहराया जाता है, जोकि बिल्कुल गलत है। अधिकांश सरकारी विद्यालय स्टाफ,धन और व्यवस्था की कमी की वजह से बंद हुये हैं। निजी विद्यालयों की तरफ सत्ता का झुकाव सबको पता है। अधिकांश निजी विद्यालयों के मालिकों का नेताओं से अच्छा रसूख है। सरकार खुद ही सरकारी विद्यालयों को बंद करने की मानसिकता रखती है। शिक्षा को भी व्यापार बना दिया गया है। यहां भी करनी और कथनी में भेद का आचरण मौजूद है। लोग सस्ते में शिक्षित होंगे तो रोजगार मांगेंगे और निजी विद्यालयों के मालिकों की काली कमाई पर रोक लग जायेगी।
हमारे सनातन योगाभ्यास का भी यही हाल है।बस प्रचार,प्रचार और प्रचार। योगाभ्यास से किसी को कोई मतलब नहीं है। संपूर्ण योगाभ्यास का व्यापारी बाबाओं ने व्यापारीकरण कर दिया है। जहां भी रुपया बनता हो,बनाओ। अभी अमरीका के 1776 फीट ऊंचे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा योगाभ्यास करवाया गया है।21 जनवरी के विश्व योगा डे (योग दिवस नहीं)की तैयारियां चल रही हैं। योगाभ्यास में इतना दिखावा और नाटकबाजी करने की क्या जरूरत है? योगाभ्यास से अहंकार,दिखावे, नाटकबाजी,पद, प्रतिष्ठा आदि विकारों को दूर करके चरित्रवान नागरिकों का निर्माण करना है। लेकिन योगा (योग नहीं)के अभ्यास द्वारा शैतानी दिमाग की भीड़ को तैयार किया जा रहा है। योगा सिखाने, सीखने और इसकी आड़ में राजनीति करने वाले लोगों के दुष्टाचरण से साफ दिखाई पड़ रहा है कि इनके पास नैतिकता,सात्विकता, सद्विचार, सद्भावना आदि का कोई चिह्न मौजूद नहीं है।
सरकार का मतलब जनमानस का हित सर्वोपरि होना चाहिये लेकिन हो विपरीत रहा है। हरेक राजनीतिक दल स्वयं की ही सेवा करने में व्यस्त है। राजनीति से सेवा करने की सीख तो कब की गायब हो गई है। अधिकांश लोग राजनीति में वही आते हैं जिनकी आपराधिक प्रवृत्ति होती है।आम जनसाधारण भारतीय चुनाव लड़कर ही दिखला दो।एक विधायक और सांसद अपने चुनावी खर्च पर 50-50,100-100 करोड़ रुपये खर्च कर देता है। फ्री में पांच किलो अनाज से पेट भरने वाला भारतीय चुनाव लड़ेगा?
संचार माध्यम जनता तक सत्य सुचनाएं पहुंचाने हेतु होते हैं लेकिन ये सभी सरकारों की गुलामी और सेवा करने में लगे हुये हैं। पूरा संचार का सिस्टम हैक किया जा चुका है। मीडिया सच्चाई नहीं दिखलाकर भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी सरकार का प्रशस्ति गान करने पर लगा हुआ है। टीवी चैनल की मालिक और करोड़ों अरबों में खेल रहे हैं और जनमानस दाल, रोटी,आटे, तेल, किराये, गैस और बच्चों की फीस के लिये पसीना पसीना हो रहा है। संवैधानिक आदर्श समता, समानता, भाईचारा, संसाधनों का समान बंटवारा गये तेल लेने।
बड़ी पीढ़ी और युवा पीढ़ी में परस्पर संवाद आवश्यक है। लेकिन इस संवाद को अब्राहमिक सोच ने भंग कर दिया है। भारतीय धर्म और संस्कृति में निहित जीवनमूल्यों की शिक्षा देने की कोई चिंता और व्याकुलता सिस्टम की ओर से नहीं है। दुनिया को नैतिकता और तर्क सिखाने वाले भारत में नैतिकता और तार्किकता गायब हो गये हैं।
महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की आयु कम है। इसकी तह में जाना आवश्यक है। इसके कारण की तलाश करने की अपेक्षा लीपापोती करने पर ध्यान अधिक है। पुरुषों की बैचेनी, व्याकुलता, बेबसी, अकेलेपन, तनाव और चिंता की किसी को कोई चिंता नहीं है। रिसर्च जर्नल्स में नारी गरिमा के आलेख प्रकाशित करने और करवाने वालों को शायद दिमागी लकवा लगा हुआ है।
धर्म की आड़ में चमत्कार अधिक और जीवनमूल्यों को धारण करने की बात कम है। विभिन्न मंचों से धर्मगुरु लोग जिन बातों का प्रचार-प्रसार करते हैं, यदि उनकी कही गई दस प्रतिशत बातों को भी वो निजी आचरण में उतार लें तो भारत विश्वगुरू बन जाये। लेकिन करे कौन? सारे आदर्श और उपदेश केवल मेहनतकश भारतीयों के लिये ही आरक्षित हैं। बड़े लोगों को हर क्षेत्र में धींगामुश्ती करने की खुली छूट मिली हुई है।
भारत में खुदाईयों से मिले सबूत यह सिद्ध करते हैं कि कश्मीर, हिमाचल, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उड़ीसा,आसाम, केरल, तमिलनाडु आदि सभी जगह पर 12000 वर्षों से नगरीय और ग्रामीण दोनों प्रकार की बस्तियां मौजूद थीं। लेकिन शिक्षा संस्थानों में वही मैकालयी पुस्तकें रटवाई जा रही हैं। भारत को राजनीतिक आजादी तो कहने को मिल गई है लेकिन मानसिक, शैक्षिक,शोधपरक,व्यापारिक, आर्थिक, सामाजिक और तार्किक आजादी अब भी नहीं मिली है। मंदबुद्धि,अल्पबुद्धि,,मूढबुद्धि लोगों से भारत भरा हुआ है।जी हुजूरी और लंबलेट हो जाना ही सफलता और सम्मान का प्रतीक बन गया है।
भारत का रोल मॉडल कहे जाने वाले गुजरात में किसी हस्पताल का विडियोज़ से जुडा कारनामा उजागर हुआ है। हस्पताल के कर्मचारियों ने महिला रोगियों के एक्सरे,अल्ट्रासाउंड तथा अन्य चैक अप के हजारों अश्लील विडियोज़ टैलीग्राम पर रुपये लेकर अपलोड किये हैं।चैक अप के दौरान यह सब काम गुप्त विडियोज़ से किया गया होगा। रुपये कमाने के लिये लोग किसी भी सीमा तक जा रहे हैं। मूल्य, नैतिकता, सदाचरण आदि का कोई महत्व नहीं है।एक नये कहे जाने वाले लेकिन पुरातन विषय ‘चिकित्सा नैतिकता’ का बड़ा शोर मचा रखा है। लेकिन मूल्य , नैतिकता और सदाचार तो सब जगह लुप्तप्राय होते जा रहे हैं। पाश्चात्य प्रभाव के कारण मैडिकल इथिक्स का बड़ा शोर मचा हुआ है। आश्चर्यजनक यह है कि किसी का कुछ नहीं बिगड़नेवाला।
किसी ने कहा है कि कीचड़ और लीचड़ से बचकर रहो। लेकिन समस्या तो यह है कि बचकर कैसे रहा जाये तथा इस तरह से बचना क्या भगोड़ापन नहीं कहा जायेगा?जब मजहब, संप्रदाय, राजनीति, शिक्षा, व्यापार, प्रबंधन, खेती-बाड़ी आदि सब जगह लीचड भरे हुये हैं तथा गली,सड़क,गटर,नाले,पार्क आदि सब जगह पर कीचड़ ही कीचड़ भरा हुआ है,इन दोनों से बचकर रहने से सांसारिक जीवन एक कदम भी नहीं चल पायेगा।संसार को लीचड़ और कीचड़ मानकर तो सिद्धार्थ गौतम भी भागकर चले गये थे तथा संसार के प्रथम भगोडे कहलाये। लेकिन हुआ क्या? वापस इसी लीचड़ और कीचड़ वाले संसार में आये या नहीं?इस संसार से भागने के फलस्वरूप अधिकांश भारत को निठल्ले,कायर और भगोडे भिक्षुओं से भर दिया। सर्वप्रथम भारत को विदेशी आक्रांताओं हेतु सहज टारगेट भी भिक्षुओं ने ही बना दिया था।
‘ सेव अर्थ ‘ कहकर हजारों किलोमीटर की यात्रा करने का ढोंग करने वाले पाखंडी बाबा अब कहां छिप गये हैं? सत्ताधारी दल द्वारा अपने पूंजीपति साथियों को लाभ पहुंचाने के लिये तेलंगाना में जंगलों को उजाड़कर वहां पर कोई भव्य निर्माण करने की योजना पर काम हो रहा है। आगे आओ बाबा जी, रोको भारतीय भूमि को बर्बाद होने से। भारत को जंगल काटने वालों और जंगलराज से बचाओ। पाखंड करना छोड़कर आओ मैदान में तथा सरकार के विरोध में धरना प्रदर्शन आदि करो।वास्तविकता यह है कि कोई भी बाबा धरती और जंगल को बचाने नहीं आयेगा।इन बाबाओं , पूंजीपतियों और नेताओं की परस्पर दोस्ती है। ये तीनों मिलकर जनमानस का रक्तपान इसी तरह से करते रहेंगे। मंचों से जो जोशीले और सदाचार के प्रवचन दिये जाते हैं,उनको ये खुद ही नहीं मानते हैं।इनके कर्मों और आचरण में कोई भी तालमेल नहीं है! मांसाहारी अहिंसा और करुणा के प्रवचन दे रहे हैं।नकली डिग्रीधारी उच्च शिक्षा का महत्व बतला रहे हैं।भ्रष्टाचारी सदाचार का उपदेश दे रहे हैं। बलात्कारी महिला सम्मान की सीख दे रहे हैं। तामसिक लोग सात्विकता के महत्व को बतला रहे हैं। बलात्कारी बाबा बार-बार पैरोल पर बाहर आ रहे हैं। न्याय करने वाले न्यायाधीश स्वयं हजारों करोड़ रुपये के साथ पकडे जाकर भी न्याय और पद की शपथ ले लेते हैं। और तो और अब तो उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश ही लड़कियों के गुप्तांगों से छेड़छाड़ करने को सही ठहरा रहे हैं। वाह रे न्याय के रखवाले भारतीय महारथियों।
अपने आराध्य महापुरुषों का अनुयायी लोग कितना अनुसरण करते हैं,इस पर ध्यान दिया जाना चाहिये।आचार्य रजनीश उर्फ ओशो ने फिरंगियों की सुविधा के लिये कई ध्यान विधियों का निर्माण किया तथा अपने आध्यात्मिक मिशन के प्रचार प्रसार और आश्रमों के संचालन का महत्वपूर्ण भार भी फिरंगियों पर ही डाला था।जो परिणाम आना था,वह आया भी। फिरंगियों ने ओशो की अधिकांश आध्यात्मिक संपदा पर जबरन अधिकार करके भारतीय संन्यासियों को आश्रमों से भगा दिया। यहां तक कि पूना के आश्रम में भी ओशो संन्यासियों को लाठियां मारकर पीटा तक गया है। पूना का आश्रम अपना आध्यात्मिक वैभव इतनी जल्दी खो देगा,इसका आशा ओशो को भी नहीं रही होगी। फिरंगियों ने जहां भी प्रवेश किया, वहीं पर विनाश, मतांतरण, शोषण, व्यापार, भेदभाव और छुआछूत को शुरू कर दिया। ओशो की ध्यान विधियों का फिरंगियों पर कोई प्रभाव नहीं पड सका।जो फिरंगी ओशो के सर्वाधिक समीप रहते थे,जब उनका यह बुरा हाल है तो बाकी का क्या हाल होगा, अंदाज लगाया जा सकता है। ओशो की आध्यात्मिक संपदा जितनी जल्दी गुरुडम और पाखंडी का शिकार हुई, उतनी जल्दी तो आर्यसमाज, रामकृष्ण मिशन आदि भी नहीं हुये हैं। आर्यसमाज जैसे क्रांतिकारी संगठन को पाखंडी बनने में कई दशक लग गये लेकिन ओशो रजनीश के देहावसान को प्राप्त होते ही फिरंगियों ने पूरी आध्यात्मिक साधना और पुस्तक परंपरा को अपने कब्जे में लेकर सबको गलत सिद्ध कर दिया है। ओशो के फिरंगी संन्यासियों ने ही ओशो को सबसे पहले गलत सिद्ध कर दिया है। भारतीय संन्यासियों का नंबर तो बाद में आता है।पढ़ें लिखे भारतीय अनपढ़ों को फिर भी अक्ल नहीं आ रही है। ओरेगॉन अमरीका में ओशो के साथ जो दुर्व्यवहार किया था,वह पूरे संसार के सामने है। परमहंस योगानंद, राधास्वामी, इस्कॉन, रामकृष्ण मिशन, महेश योगी, ब्रह्माकुमारीज,आर्ट ऑफ लिविंग,जग्गी वासुदेव आदि मिशनरी जबरन प्रचारकों, बाईबल,ईसा मसीह,सैंट पाल,सैंट थामस आदि का प्रशस्ति गान वैसे ही नहीं करते आये हैं। आखिर या तो ये उनसे मिले हुये हैं या फिर वहां पर इनको अपनी जड़ों को जमाना है। अपनी जड़ों को पश्चिम में रोपने के लिये भारतीय धर्माचार्य झूठ का सहारा लेते आये हैं।सच बोलते इनका वही बुरा हाल किया जायेगा,जो बुरा हाल ओशो का किया था। राजीव भाई दीक्षित ने सच बोलना जारी रखा,उनका क्या हुआ?वो तो अधिकांशतः भारत में ही काम करते आ रहे थे।फिरंगियों का आचरण उनकी कथनी से बिल्कुल विपरीत होता है।थियोसोफिकल सोसायटी के कर्नल अल्काट, ब्लावट्स्की,ऐनी बेसेंट आदि ने जिद्दू कृष्णमूर्ति का यूज करके उनको विश्वगुरु प्रचारित करके सनातन धर्म के विरोध में अपने ईसाईयत और नवबौद्ध के सम्मिलित एजेंडे को सफल बनाने का पुरजोर प्रयास किया था, लेकिन स्वयं जिद्दू कृष्णमूर्ति ने उनके षड्यंत्र पर पानी फेर दिया था।काश, ओशो के पास भी कोई ऐसी संन्यासियों की सजग और सचेत मंडली होती जो फिरंगियों के मनसूबे को सफल नहीं होने देती। पश्चिमी लोगों की करनी और कथनी का भेद हर अवसर, परिस्थिति और स्थान पर दिखाई पड़ता है।
एक तरफ तो आधुनिक युग ने भौतिक क्षेत्र में चमत्कारिक तरक्की कर ली है तो दूसरी तरफ आचरण और चरित्र से संबंधित नैतिक, मानसिक, मूल्यपरक, तार्किक, सदाचार, सद्भावना आदि सब कुछ लुप्त सा हो गया है।होश,जागरण, जागरुकता, विवेक,समझ,संवेदनशीलता आदि को कहीं कोई महत्व नहीं दिया जाता है। आदर्शवादी प्रवचन सभी देते हैं लेकिन आचरण में उतारने की न तो शिक्षा दी जाती है तथा न ही कोई ऐसा कर रहा है। दर्शन,दर्शनशास्त्र, फिलासफी आदि सिर्फ बातचीत तक सिमटकर रह गये हैं।
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आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र -136119