वो थी महफिल की शिरकत
वो थी महफिल की शिरकत
अब शेष न कुछ जीवन में,
राग रागनी भी रूठ परे है,
कलियां भी है मुरझाई,
अब दिल है बेचैन पड़ा,
चांदनी भी शरमाई
अब ये आंखे बस नम हो कर रहती
एक दीदार को हर पल सहती।
अमन कुमार
वो थी महफिल की शिरकत
अब शेष न कुछ जीवन में,
राग रागनी भी रूठ परे है,
कलियां भी है मुरझाई,
अब दिल है बेचैन पड़ा,
चांदनी भी शरमाई
अब ये आंखे बस नम हो कर रहती
एक दीदार को हर पल सहती।
अमन कुमार