भारत पर बेवकूफी भरे तंज से बांग्लादेश भारी व्यापार घाटा : अभिलेश श्रीभारती

साथियों,
इस विषय पर मुझे लिखते हुए एक तरफ मन ही मन हंसी भी आ रही है और एक तरफ दया भी लेकिन क्या करें,
जब पड़ोसी भूल जाता है कि उसकी तरक्की की सीढ़ी किसी और की दीवार से टिकाई गई थी, तो घमंड जन्म लेता है। जब कोई देश अहसान को अधिकार समझ बैठे, तो वह न केवल कूटनीति की गरिमा खोता है, बल्कि अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी भी मार बैठता है और बांग्लादेश ने भी अपने पैर पर अब कुल्हाड़ी मार ली है। बांग्लादेश ने हाल ही में दावा किया कि भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) और seven sisters के पास उसका समुद्री प्रभुत्व है और भारत के इस क्षेत्र में अपना कोई ‘ओशन रीजन’ नहीं है और इसके गार्जियन हम हैं। भारत में इस बेवकूफी भरे ऊल-जुलूल दावे के जवाब में बांग्लादेश को मिली ट्रांस शिपमेंट की नीति तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी।
यह फैसला बांग्लादेश के लिए सिर्फ राजनयिक झटका नहीं, बल्कि आर्थिक भूकंप साबित हो रहा है — ₹7000 करोड़ से अधिक के सालाना नुकसान के साथ।
भारत की ट्रांस शिपमेंट सुविधा क्या थी?
भारत ने बांग्लादेश को यह सुविधा दी थी कि वह अपने माल को भारतीय बंदरगाहों जैसे कोलकाता और हल्दिया से विश्व के अन्य देशों में भेज सके।
बांग्लादेश के खुद के पोर्ट – चटगांव और मोंगला – गहराई में सीमित, संसाधनों में पिछड़े हैं। भारत की मदद से उसका व्यापार तेज़, सस्ता और प्रभावी हो गया था।
बांग्लादेश को कितना फायदा हो रहा था (अब नुकसान होगा):
1. हर कंटेनर पर औसतन बचत: $850 (₹70,000)
2. सालाना कंटेनर ट्रैफिक: लगभग 1.2 लाख (1,20,000)
आइए अब थोड़ा गणित में दिमाग दौड़ाते हुए अब गणना करें:
1,20,000 कंटेनर × ₹70,000 प्रति कंटेनर = ₹8,400 करोड़ सालाना बचत
अब ये बचत गई पानी में–
अब सीधा नुकसान = ₹8400 करोड़ प्रति वर्ष
अन्य छिपे हुए नुकसान:
समय में देरी:
ट्रांस शिपमेंट बंद होने से अब बांग्लादेश को 7-8 दिन अधिक लगेंगे शिपमेंट में
→ इसका मतलब: एक्सपोर्ट का स्लो डाउन, खराब होने वाले माल का नुक़सान, निवेशकों की नाराज़गी।
लॉजिस्टिक लागत में उछाल:
खुद के पोर्ट पर ट्रैफिक, डीज़ल, स्टाफ, टेक्नोलॉजी – सबकी लागत बढ़ेगी
→ अनुमानित अतिरिक्त खर्च = ₹800–₹1000 करोड़ प्रति वर्ष
बांग्लादेश के बेवकूफी पर मेरे कुछ कटाक्षपूर्ण तंज😂
> “जिसे समंदर तक पहुँचाने के लिए भारत ने पुल बना दिया, अब वही कहता है – पुल मेरा है!” चल हट फूल
> “बांग्लादेश के नीति निर्माता ये भूल गए कि व्यापार दोस्ती से चलता है, दादागिरी से नहीं।”
> “जिसने किराए की छत पर झंडा गाड़ दिया, अब बारिश में छाता ढूंढ रहा है।”
> “जिसे भारत ने इंटरनेशनल व्यापार में बिठाया, वही अब कह रहा – तू रास्ता हटा, मालिक मैं हूँ।”
> “जिसने सहारे को सीढ़ी समझ लिया, अब गिरावट की गहराई नाप रहा है।”
“बांग्लादेश अब उस नाविक की तरह है, जिसने किनारा छोड़ दिया, लेकिन पतवार किसी और की थी।”
“भारत की एक नीति बदली और बांग्लादेश की पूरी नीतियाँ हिल गईं।”
“अब समंदर की शेखी, घाटे की लेखा बन चुकी है।”
“अभिलेश श्रीभारती”
(समाजिक शोधकर्ता, विश्लेषक, लेखक)
भारत का ट्रांस शिपमेंट रोकना एक चेतावनी है – “संपर्क को समर्थन मत समझो, और सहारे को अधिकार नहीं।”
बांग्लादेश को अब न केवल ₹8000 करोड़ की सीधी आर्थिक चोट लगेगी, इसके अतिरिक्त नुकसान ₹2000 करोड़ वह भी ऐड कर लीजिए अब बांग्लादेश के इस बेवकूफी पर उसकी विदेश नीति की अपरिपक्वता पर भी सवाल उठेंगे।
अब वक्त है कि वह समझे –
> “जो उड़ान दूसरों के पंखों से भरी गई हो, उसमें अपना आकाश खोजने की ग़लती मत करना।
ट्रांस शिपमेंट केवल एक सुविधा नहीं थी – यह बांग्लादेश की रीढ़ थी, जिसे भारत ने अपनी दोस्ती से मज़बूत किया था।
अब इस रीढ़ की हड्डी टूट चुकी है, और बांग्लादेश को ₹7000–₹10,000 करोड़ तक का वार्षिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।
अब जरूरत है बयानबाज़ी के बजाय बुद्धिमत्ता से चलने की,
वरना अगले कदम पर भारत “बिजली ग्रिड”, “वॉटर फ्लो”, “रेल एक्सेस” भी पुनर्विचार में ले सकता है।
और तब बांग्लादेश को सिर्फ नुक़सान नहीं, आर्थिक संकटकाल का सामना करना पड़ेगा।
नोट: यह लेखक के अपने निजी विचार हैं!
✍️ लेखक ✍️
अभिलेश श्रीभारती
सामाजिक, शोधकर्ता, विश्लेषक,