न पूछिए, दीवानों का हाल-ए-दिल,

न पूछिए, दीवानों का हाल-ए-दिल,
गुमसुम गुमसुम, महफ़िल महफ़िल।
एक आप हैं जिनसे गुफ़्तगू हो जाती है,वरना,
न हम किसी के काबिल न कोई हमारे काबिल।
मयखाने में जब भी, हुस्न पे चर्चा होती है,
आपका तसव्वुर, सबसे अव्वल शामिल।
तुम्हारे ख़यालों में हजारों शबें जागी-जागी,
न पूछो क्या-क्या खोया, क्या हुआ हासिल।
कुछ लोग, तुम्हें पैगाम-ए-वफ़ा कहते हैं,
कुछ लोग कहते, मस्त अदा-ए-क़ातिल।