अबे ओ संविधान के ज्ञानी,तू अंदर आ (कटाक्ष): अभिलेश श्रीभारती

“आजकल कोई भी व्यक्ति अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी अनाप-शनाप बोल देते हैं।
लेकिन अगर कोई को सार्वजनिक मंच पर गाली दे — तो शायद वो कहें, ‘ये तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, भाई!’
वाह रे न्याय! जहां एक आम नागरिक की आवाज़ पर धारा 124A लग जाती है,
और एक ‘विशेष’ की गाली पर संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) चमकने लगता है!”
“इसमें माफी का स्तर भी केस-टू-केस बदलता है —
गाली देने वाले का ओहदा देख लो, फिर संविधान की व्याख्या तय होती है!”
: अब इसी बात को मैं एक उदाहरण से समझाता हूं 👇
“अगर कोई आम आदमी सड़क पर गाली दे, तो कानून की लाठी तुरंत उसके सिर पर पड़ती है…
लेकिन अगर कोई ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के नाम पर एक जज को गाली दे,
तो क्या जज भी मुस्कुराकर कहेंगे —
‘वाह! क्या अभिव्यक्ति है!'”
सच तो ये है —
कानून सबके लिए बराबर है,
पर जज साहब को गाली देने वाले की “अभिव्यक्ति” शायद सीधा मानहानि और अवमानना की चौखट लांघ जाती है!
तो भाई साहब,
“अभिव्यक्ति की आज़ादी” का कार्ड सब जगह नहीं चलता,
वरना कोर्ट भी कहेगा —
“अबे ओ संविधान के ज्ञानी, तू अंदर से ही अभिव्यक्त हो!”
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अभिलेश श्रीभारती
सामाजिक शोधकर्ता, विश्लेषक, लेखक