तुम रख लेना
तुम रख लेना
अपने दरों दीवार
ये कमरा,
ये खिड़की ये दरवाज़े
जिनका तुम ताना देते हो
ये हमेशा से मेरे लिए
जेल ही थे
जिनकी चार दिवारी में
तुमने हमेशा रौंदा
मेरा मान, सम्मान
मेरा अस्तित्व
तुम्हे मुबारक,
तुमने घोंट दिया
मेरा हँसना
मेरे आँसू
मेरी खुशियाँ
तुमने अपनी नफरतों से
बस उपजाए
मेरे दुःख, मेरी महरुमियाँ
तुमने अपने जहर से सींचा
मेरा लहू
जो अब मरने लगा है
बस सांस बाकी है
और शायद रात
अगर मैं निकली
तो खुदा की कसम
नहीं लौटूँगी
न इस दर की चौखट पर
न किसी मय्यत पर
न ही महशर में
मैं ठुकराती हूँ
तुम्हारा विरसा
जिस पर तुम्हे नाज़ है
जिसका तुम्हे डर है
जिसका तुम्हे लालच है
तुम्हारी हर एक बला
जिसे तुम खजाना समझते हो
मैं ठुकराती हूँ
मैं ठुकराती हूँ