कफ़स में कै़द चालाकियां
एक मौलिक नज़्म आपकी मुहब्बतों के हवाले ।
नज़्म
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खामोशियाँ देखो आज जश्न मनाने लगी है,
कल तो जैसे मातम था ऐसे बताने लगी है।
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बैचेनियों ने शायद उन को सोने न दिया हो,
बेशर्म उनकी आंखे,खुशियाँ जताने लगी है।
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खफ़स में कै़द चालाकियाँ,आजाद हो गई,
हमें लगा जैसे साथ है हमारे, बताने लगी है।
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हम भी मासूम निकले कहा जो मान लिया,
पता चला वो तो हमें,जिंदा जलाने लगी है।
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भला हो अस्थियों का जो जलने से बच गई,
वरना राख तो दुनियाँ कब से बनाने लगी है।
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उफ्फ क्या कसूर था,जो दुश्मन दुनियाँ बनी,
शुक्र है जिंदगी का ‘जैदि’ जो बचाने लगी है।
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मायने:-
खफ़स-पिंजरा
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”