हास्य कविता – इतिहास की कमजोरी
हास्य कविता – इतिहास की कमजोरी
इतिहास में कमजोर होशियार को, मास्टर ने आगे बुलाया
डरते हुए फिर होशियार नें, धीरे से सिर को हिलाया
मास्टर बोला होशियार तू, काम मेरा कर लाया
घूर के उसको देखा उसने, डंडा हाथ में अपने उठाया
डरते हुए होशियार को, एक बालक ने समझाया
आगे जाकर प्रश्न सुनाओ, धीरे से उसे हिलाया
डर के आगे जीत है कहकर, हौसला उसका बढ़ाया
कांपते हुए होशियार का, रोंगटा खड़ा ही पाया
डर के मारे सब भूल गया, सिर उसका चकराया
अपने अंगूठे का नाखून उसने, फिर से आज चबाया
हिन्दूस्तान के मैप में उसको, जर्मन हिस्सा पाया
सत्तावन का युद्ध भी उसको, चीन नजर था आया
कुतुबमीनार अंग्रेजो ने दिल्ली में, लन्दन से था मंगवाना
कहता था उसके दादा ने, पहला इंजन था चलाया
पिछले साल इतिहास में उसको, गोल था अण्डा आया
सारे बालक पास थे उसमें, फेल वही था पाया
बेहोशी का नाटक कर ले, गोलू ने समझाया
होशियार खड़े होते ही, पैरों से लड़खड़ाया
गिरा धड़ाम से नीचे एकदम, अपना नाटक दिखाया
आओ बचा लो होशियार को, गोलू भी चिल्लाया
पढ़ता रहता सारी रात पर, इतिहास समझ नहीं आया
उसकी ऐसी दशा देखकर, मास्टर जी घबराया
लेकर पानी ठंडा उसने, होशियार को पिलाया
सुनकर बातें मास्टर जी की, होश उसे फिर आया
© अरविंद भारद्वाज