कभी अकेले में बैठेंगे तो सोचेंगे
कभी अकेले में बैठे तो सोचेंगे।
मेरा अपना यहां क्या है मरियम।।
बड़ा मजबूर किया है अपनो ने।
वरना गैरों में रखा क्या है मरियम ।।
उसे छोड़ने की बात आये तो।
सोचता हूं वो अपना है मरियम।।
ख्याल टूटे दिल के जख्मों का।
अब मुझे बहुत रुलाता है मरियम।।
अपना जनाजा उठाके खुश हूं मैं।
यहां कौन सीने से लगाता है मरियम।।
उस पार जाने की बात सोचता हूं मैं।
घर का ख्याल आता है मरियम।।
तेरा दर्द बता नहीं सकता यूं
मैं भी बहुत उदास हूं मरियम
कवि दीपक सरल