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15 Mar 2025 · 2 min read

डिजिटल युग में निजता का संकट

विश्लेषण: डिजिटल युग में निजता का संकट

डिजिटल युग ने हमारे जीवन को अभूतपूर्व तरीकों से बदल दिया है, लेकिन इसके साथ ही निजता के संकट ने भी गंभीर रूप ले लिया है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के व्यापक उपयोग ने व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक डोमेन में ला दिया है, जिससे निजता की सीमाएँ धुंधली हो गई हैं।

निजता के अधिकार की चुनौतियाँ:
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर हमारी गतिविधियाँ, जैसे सोशल मीडिया पोस्ट, ऑनलाइन खरीदारी और सर्च हिस्ट्री, हमारे बारे में विस्तृत प्रोफ़ाइल बनाती हैं। यह जानकारी न केवल विज्ञापनदाताओं बल्कि साइबर अपराधियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनती है। इसके अलावा, सरकारी निगरानी और डेटा संग्रहण की नीतियाँ भी निजता के अधिकार पर सवाल खड़े करती हैं।

‘भूल जाने का अधिकार’ की आवश्यकता:
निजता की रक्षा के लिए ‘भूल जाने का अधिकार’ महत्वपूर्ण है, जो व्यक्तियों को अपनी पुरानी या अप्रासंगिक जानकारी को इंटरनेट से हटाने का अधिकार देता है। हालांकि, भारत में इस अधिकार को लेकर कानूनी ढांचा अभी भी विकासशील है, जिससे व्यक्तियों की निजता की सुरक्षा में कमी है।

निजता की रक्षा के उपाय:
कानूनी सुधार: निजता की सुरक्षा के लिए स्पष्ट और सख्त कानूनों की आवश्यकता है, जो डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और डेटा संग्रहण नीतियों को नियंत्रित करें।

जन जागरूकता: लोगों को अपनी ऑनलाइन गतिविधियों के प्रति सतर्क रहना चाहिए और निजता सेटिंग्स का सही उपयोग करना सीखना चाहिए।

कॉर्पोरेट जिम्मेदारी: कंपनियों को उपयोगकर्ताओं की जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए और डेटा संग्रहण में पारदर्शिता बरतनी चाहिए।

अंत में, डिजिटल युग में निजता का संकट एक गंभीर मुद्दा है, जिसे कानूनी, सामाजिक और तकनीकी स्तर पर समग्र प्रयासों से ही सुलझाया जा सकता है।

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