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13 Mar 2025 · 3 min read

राष्ट्रीय मुद्रा प्रतीक से दूरी,तमिलनाडु की सरकार का विचित्र निर्णय: अभिलेश श्रीभारती

देश के हर एक नागरिक के लिए उनका राष्ट्र सर्वप्रथम और सर्वोपरि होती है चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, मजहब, समुदाय या किसी राज्य से क्यों ना हो।
जबकि तमिलनाडु में ऐसा नहीं है वहां राज्य पहले हैं और ऐसा इसलिए मैं कह रहा हूं क्योंकि
तमिलनाडु सरकार ने हिंदी विरोधी राजनीतिक की आड़ में एक विचित्र निर्णय लिया है।
इस आलेख को लिखते हुए हम उन सारे गतिविधियों से आपको अवगत कराने की कोशिश कर रहे हैं।
देखिए
तमिलनाडु में क्षेत्रीय राजनीति अक्सर राष्ट्रीय प्रतीकों और नीतियों से टकराव के रूप में सामने आती रही है। द्रविड़ राजनीति के मूल में हिंदी विरोध, ब्राह्मणवाद का निषेध और क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग शामिल रही है, जिसने समय-समय पर राज्य को राष्ट्रीय एकता से अलग रुख अपनाने पर मजबूर किया है। हाल ही में तमिलनाडु सरकार द्वारा राज्य के बजट दस्तावेजों से राष्ट्रीय मुद्रा प्रतीक ‘₹’ को हटाने का मामला इसी प्रवृत्ति का एक और उदाहरण है। यह वही DMK है, जो 2010 में इस प्रतीक के अपनाए जाने के समय केंद्र की UPA सरकार का हिस्सा थी और विरोध की कोई आवाज नहीं उठाई थी। विडंबना यह है कि इस प्रतीक को डिजाइन करने वाले थायागराजन दयानंद उयदय कुमार खुद तमिलनाडु से हैं और उनके पिता DMK के ही विधायक रह चुके हैं, लेकिन आज DMK अपनी ही विचारधारा के विपरीत जाते हुए इसे अस्वीकार करने की नीति अपना रही है। इस प्रकार की राजनीति केवल सांकेतिक नहीं, बल्कि गहरे राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित है, जिसमें राष्ट्रीय पहचान से कटाव को बढ़ावा दिया जाता है। तमिलनाडु में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जहां राष्ट्रीय नीतियों का विरोध केवल इसलिए किया गया क्योंकि वे केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई थीं, चाहे वह नई शिक्षा नीति हो, राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) हो, या फिर हिंदी भाषा को बढ़ावा देने की कोशिश। यह स्पष्ट रूप से क्षेत्रीय अस्मिता के नाम पर राष्ट्रीय संरचना को चुनौती देने का प्रयास है, जिसे कुछ राजनीतिक दल अपने लाभ के लिए भुनाते हैं। हाल के वर्षों में UPI और डिजिटल भुगतान प्रणाली को लेकर भी तमिलनाडु सरकार का रवैया ठंडा रहा है, जबकि यह भारत की वित्तीय व्यवस्था को मजबूती देने वाला कदम है। भारतीय संविधान के तहत प्रत्येक निर्वाचित सरकार का कर्तव्य है कि वह राष्ट्रीय संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखे, लेकिन जब कोई राज्य सरकार खुले तौर पर राष्ट्रीय प्रतीकों को नकारने लगती है, तो यह केवल क्षेत्रीय स्वाभिमान नहीं, बल्कि एक विभाजनकारी मानसिकता का संकेत है। तमिलनाडु में पहले भी ऐसे कई अवसर आए हैं, जब केंद्र सरकार की योजनाओं का विरोध केवल राजनीतिक कारणों से किया गया, चाहे उनका लाभ राज्य को हो या न हो। DMK और अन्य द्रविड़ दलों की राजनीति का मूल हमेशा केंद्र विरोध पर टिका रहा है, लेकिन जब यही राजनीति राष्ट्रीय एकता के प्रतीकों को मिटाने तक पहुंच जाए, तो यह चिंता का विषय बन जाता है। एक ओर जहां भारत वैश्विक मंच पर अपनी आर्थिक और डिजिटल पहचान को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर एक राज्य सरकार का इस तरह का कदम भारतीयता की साझा भावना को कमजोर करता है। यह महज प्रतीकात्मक निर्णय नहीं है, बल्कि इससे एक मानसिकता झलकती है, जो भारतीय राष्ट्रवाद से अलगाव और क्षेत्रीय वर्चस्व की राजनीति को प्राथमिकता देती है।
नोट: यह लेखक के अपने निजी विचार हैं।
✍️ लेखक ✍️
अभिलेश श्रीभारती
सामाजिक शोधकर्ता, विश्लेषक, लेखक

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