पूजा
समर जिंदगी का जीतने !
बनकर दुर्गा वह निकली !!
जैसे खड़ी धार में !
सरपट चढ़े मेरी मछली !!
कभी कृष्ण प्रिया राधा !
कभी विष्णु प्रिया तुलसी !!
पर जीवन के संग्राम में !
झुलस सकी न प्रिय तुलसी !!
सूर्य सा दमकता चेहरा !
जैसे चांद के सिर पर सहरा !!
कभी लगे गुड्डी गुडिया सी !
तो कभी सिंदूर की पुड़िया सी !!
चन्द्र सी चंचलता और सुन्दरता !
है पवित्र पावन सी निर्मलता !!
पर नाम दिया उसने दूजा !
मैने कहा..
ये देवी पूज्य है…
ईश्वर ने कहा…
यह मेरी सच्ची पूजा !!
• विशाल शुक्ल