कुंडलिया . . . .

कुंडलिया . . . .
झूठी हमदर्दी यहाँ, झूठी है मुस्कान ।
कठिन बहुत है भीड़ में, अपनों की पहचान ।
अपनों की पहचान, यहाँ पर छलते अपने ।
आँखों में भी आज, लगें सब झूठे सपने ।
कैसा है बदलाव , लगे यह दुनिया रूठी ।
झूठ नहीं है यार, यहाँ हमदर्दी झूठी ।
सुशील सरना / 12-3-25