जिंदा हूँ…..क्या इस बात पे शर्मिंदा हूँ

जिंदा हूँ…..क्या इस बात पे शर्मिंदा हूँ
काट के अपने पंख
पिंजरे मे कैद परिंदा हूँ
अस्तित्व ढूँढ़ता अपना
दुविधा मे पड़ा हूँ
खुद में खोया हूँ
या खोया हुआ बंदा हूँ
पर हुंनर है मुझमे
जब भी मुस्कुराता हूँ
कैद हो जाते है सब इस भ्रम मे
मैं मनमौजी आज़ाद बाशिंदा हूँ
-रितु गुप्ता