जिसे मौत भी डरा न सकी

नियोगी जी को अपनी हत्या की साजिश की जानकारी होने के बावजूद निश्चिंत नियोगी जी दिल्ली यात्रा से लौटकर अपने अंतिम सप्ताह में अपने परिवार समेत दल्ली राजहरा छोड़कर भिलाई में बस जाने की बात कर रहे थे और साथ-साथ जोर-शोर से कुछ दिन बाद गांधी जयंती पर रायपुर में एक विशाल रैली आयोजित करने की तैयारियाँ कर रहे थे। लेकिन जिन ताकतों के लिए नियोगी खतरा बन चुके थे उन्हें अब उनका अस्तित्व ही मंजूर नहीं था।
उन दिनों हत्या की साजिश की खबरों से सचेत होकर नियोगी के एक डाक्टर साथी कोशिश कर रहे थे कि भिलाई के उनके हुडको कालोनी के क्वार्टर की खिड़की में लोहे की एक मजबूत जाली लगवा दी जाये। दल्ली राजहरा के एक बढ़ई को 27 सितम्बर की सुबह पैसा भी दे दिया गया था। उसी शाम को नियोगी जी 2 अक्तूबर की रैली की तैयारी के सिलसिले में रायपुर गये। वहां अपने तीन मित्रों के साथ उन्होंने रात्रि का भोजन भी किया। राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कई समस्याओं पर इन मित्रों के साथ विचार-विमर्श भी हुआ।
रात 12 बजे नियोगी जी रायपुर से भिलाई के लिए यूनियन की गाड़ी में रवाना हुए। अपने कमरे में किताब पढ़ते-पढ़ते उनकी आँख लग गयी। बिजली भी जलती रह गयी। उस समय घर में उनके अलावा केवल यूनियन का ड्राइवर बहलराम साहू था। तड़के लगभग पौने चार बजे उसी खुली खिड़की से उन पर एक-के-बाद-एक छह गोलियां चलायी गयीं। ‘मा गो’ की चीख सुनकर बहलराम दौड़कर आया तो नियोगी को खून से लथपथ पाया। उनके सिरहाने लेनिन की ‘ऑन ट्रेड यूनियन्स’ (‘ट्रेड यूनियनों पर’) नामक किताब खुली हुई पड़ी थी। कुछ ही देर बाद नजदीक के सेक्टर-9 अस्पताल में नियोगी को मृत घोषित कर दिया गया।
यह विडम्बना ही है कि लगभग तीस वर्ष पहले छत्तीसगढ़ की जिस इस्पात नगरी भिलाई में नियोगी ने जलपाईगुड़ी से आकर एक अप्रेंटिस के रूप में अपने जीवन में नयी दिशा की तलाश शुरू की थी, पूरे छत्तीसगढ़ अंचल में एक संघर्षमय, प्रेरणादायक जीवन बिताने के बाद उन्होंने उसी इस्पात नगरी के सेक्टर-9 अस्पताल से दुनिया से विदा ली।