नारी की जाति…!!

Happy women’s day ❤️
नारी की तुम बात करो तो,संपूर्ण सृष्टि है नारी अस्तित्व में।
जाति,क्षमता जब पूछो तो, चारों वर्ण चित्रित व्यक्तित्व में।
वात्सल्य को हृदय सहेज, पलता है गर्भाशय में जीवन,
बन जाती वट वृक्ष स्वयं यह, जब करती सृष्टि का सर्जन।
हाँ! #शूद्र बनी,जब जननी बन,मल-मूत्र में खुद को ढाल रही मैं।
सेवा में तल्लीन, हर क्षण समर्पित, नवजात शिशु को संभाल रही मैं।
रात जागकर, प्यार लुटाकर,उसकी पीड़ा को पाट रही मैं।
वर्ग, जाति, कुल भेद मिटाकर सुगंध स्नेह की बाँट रही मैं।
#क्षत्रिय भी हूँ, जब ढाल बनूँ,संतान को हर संकट से बचाऊँ।
रक्षक बन तलवार उठाकर,हर वार अपने हृदय सह जाऊँ।
वीरांगना बन रक्षा करती जब विपदा संग आती आंँधी।
अनुसुया बन पोषण करती,दुर्गा बन हर विपदा बाँधी।
#ब्राह्मण हूँ, जब ज्ञान बाँटकर, मैं संस्कारों का दीप जलाऊँ।
शिक्षा, शील, पाठ नीति का, मैं हर पीढ़ी को सिखलाऊँ ।
क्षमाशील, संस्कार, धैर्य संग, नारी से बनीं पीढ़ियाँ प्रबुद्ध हैं।
केंद्र बिंदु जीवन का नारी,उर रखती सद् भाव विशुद्ध है।
संयम संतति को सिखलाकर नारी,#वैश्य रूप में उभर चली।
आय-व्यय का महत्व समझाकर, उन्नति की ले डगर चली।
रिश्ते सहेजे घर संवारे,जीवन का नित करती पदार्पण।
परिवार पर स्वयं को वारे,तन मन-धन-तज,निज का अर्पण।
अंतर्मन सहती है क्रंदन,नारी त्याग धर्म का स्मरण है।
अंत:स्थल सुरभित सम चंदन,चित् शुद्ध निर्मल दर्पण है।
ईश स्वरूपा पुण्यमती माँ,सुशीलतम नीति का वरण है,
त्रिदेव भी पूजें माँ को, तीनों लोक इस माँ की शरण हैं।
कहो, मेरी जाति बतलाओ,किस वर्ग – वर्ण रहे नारी?
मैं माँ हूँ, मैं सृष्टि सृजक भी,मैं ही आदि-अंग त्रिपुरारी!
नाना रूप धरे जीवन में करके निज खुशियों का तर्पण।
कभी शूद्र, क्षत्रिय, ब्राह्मण तो कभी वैश्य बन किया समर्पण।
संतुलन की मूरत नारी,बन पत्नी परिवार संजोये।
कभी तनया कभी वधू रूप में हर रिश्ते में प्रेम पिरोये।।
पुरुष प्रधान इस जग में ‘नीलम’ नारी की रही अलग पहचान।
तोड़ रूढ़ियों की जंजीरें गढ़ती नारी नव प्रतिमान।
नीलम शर्मा ✍️