आदत व चाहत पहली सी फिर कहाँ से लाऊँ मैं.. अब सोच की पोटली भी

आदत व चाहत पहली सी फिर कहाँ से लाऊँ मैं.. अब सोच की पोटली भी मेरे मस्तिष्क के काबू में नहीं रही! दिल में सोच घबराता है जाने कल क्या होगा.. पर कल तो होता ही नहीं फिर
परिणाम किसका होगा ? कल की चाहत में हम आज को ही खोए जा रहे हैं..