राजनीतिक परिदृश्य: मोहिनी थिएटर्स के नायक और जनता की नाराजगी

राजनीतिक परिदृश्य: मोहिनी थिएटर्स के नायक और जनता की नाराजगी
अक्सर क्रिकेट की चर्चाओं में सुना होगा कि जब पाकिस्तान टीम किसी बड़े आईसीसी टूर्नामेंट में भारत से हारती है, तो उनकी वापसी का सफर सीधा पाकिस्तान नहीं, बल्कि वाया दुबई या अन्य किसी सुरक्षित रूट से होता है। वजह? गुस्साए प्रशंसकों से बचना!
कुछ ऐसी ही स्थिति इन दिनों मोहिनी थिएटर्स ऑफ ड्रामा कंपनी के शीर्ष दो चेहरों की है। दोनों ही स्वयं को कट्टर ईमानदार साबित करने में लगे थे, लेकिन जनता ने उन्हें सिरे से नकार दिया। चुनावी पराजय ने उनकी साख पर गहरी चोट पहुंचाई है। नंबर दो, जो शिक्षा में क्रांति लाने का दावा करते थे, अब खुद ऐसी स्थिति में हैं कि उनके लिए सीखने-समझने का समय आ गया है। उन्होंने बच्चों को यह पाठ पढ़ाया था कि मेहनत और लगन से किसी भी लक्ष्य को पाया जा सकता है, लेकिन अब खुद उनके लिए अपनी साख बचाना मुश्किल हो गया है।
जहाँ गुरु लंबा काफिला लेकर पंजाब में आत्मशुद्धि की साधना में व्यस्त हैं, वहीं चेला राजस्थान के किसी गांव में शरण लेकर अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रहा है। अब ये लोग अपने ही समर्थकों से बचने के लिए इधर-उधर भाग रहे हैं, क्योंकि इनका समर्थन वास्तविक नहीं, बल्कि पेड सपोर्ट पर टिका हुआ था। अब जब इनकी सरकार नहीं रही, तो उन कार्यकर्ताओं की सेवाएँ भी स्वतः समाप्त हो गईं। ऐसे में इनका सामना करना मुश्किल हो गया है।
इनकी प्राथमिकता अब जनता नहीं, बल्कि खुद के लिए रोजगार ढूँढना है। कार्यकर्ताओं को बाद में संभाला जाएगा। इसके अलावा, कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मोटी रकम भी चाहिए, क्योंकि सत्तारूढ़ दल अब इन्हें आसानी से छोड़ने वाला नहीं है। इनके खिलाफ तमाम मामलों की परतें खुलने वाली हैं, और जल्द ही अदालतों में हाजिरी लगती नजर आएगी।
फिलहाल, इनका भविष्य मंचीय अभिनय से ज्यादा न्यायिक मंच पर तय होने की संभावना रखता है।
लेखक
~अभिलेश श्रीभारती~
सामाजिक शोधकर्ता, विश्लेषक, लेखक