*होली का रंग जमा है यह (हास्य कविता/राधेश्यामी छंद)*

होली का रंग जमा है यह (हास्य कविता/राधेश्यामी छंद)
🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍂
1)
नकली मुस्कान रखो चाहे, टेढ़े मुख पर जुर्माना है।
होली का रंग जमा है यह, हॅंस-हॅंस कर सबको आना है।।
2)
जो नहीं हॅंसे उसको थोड़ी, गुदगुदी बगल में करवाओ।
मनहूस लिए जो सूरत हैं, जबरन उनको यों हॅंसवाओ।।
3)
हॅंसने का कोर्स जरूरी है, इसकी ट्यूशन मजबूरी है।
राशन-पानी के चक्कर में, सबकी हॅंसने से दूरी है।।
4)
कुछ जेब-खर्च करके आओ, पिचकारी में रॅंग भर लाओ।
गुझिया हो पिचकी हुई भले, दो गुझियॉं लेकिन खिलवाओ।।
5)
दल की कुछ बात नहीं करना, जनता का मतलब जनता है।
दल का मतलब तो दलदल है, उतरा कीचड़ में सनता है।।
6)
दस ग्राम गुलाल मलो प्यारे, बिल एक किलो का बनवाना।
भूखे मर जाओगे वरना, सीखो कुछ कमा-कमा खाना।।
7)
इस बार पैर छूना मतलब, पैरों को सच छूना होगा।
जो छुए बुजुर्गों के घुटने, जुर्माना तब दूना होगा।।
8)
जो गले मिलेंगे प्रेमीजन, पहले इलायची खाऍंगे।
सब लोग इस तरह होली पर, भर-भर खुशबू फैलाऍंगे
—————————————-
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451