दोहा षष्ठक. . . . . विविध
दोहा षष्ठक. . . . . विविध
मौसम रीते प्रीति के, अब छाया बैराग ।
मन बोझिल है साजना, बैरी लगता फाग ।।
साथ हमारे रात भर, जलते रहे चिराग ।
बांहों में सिमटी रही, मौन मदन की आग ।।
दर्द मिलेगा छेड़कर , बीते जीवन राग ।
पल भर में मिटती यहाँ,हर झरने की झाग ।।
दृग शर ने ऐसे किये, हृदय पृष्ठ पर घाव ।
मदन सिंधु की वीचि पर, चली प्रेम की नाव ।।
पतझड़ से रिश्ते हुए, मौन हुए संवाद ।
सुरसा सी दूरी बढ़ी, मिटे सभी अह्लाद ।।
प्राण प्रतीक्षा में रहे, बेकल सारी रात ।
रह – रह कर सहता रहा, हृदय विरह आघात ।
सुशील सरना / 5-3-25