मेरी हमनवां
शाम ढलते ही तेरा ख्याल आता है
जैसे बिछड़ा कोई साथी याद आता है।
दिन रात साथ जिसके हम रहते थे बेफिक्र
न जाने क्यों अकसर वो साथ याद आता है।
तालीम के बहाने जब स्कूल का रुख किया
पढ़ते थे साथ जिसके, साथी याद आता है।
वफा के साथ जिसने ताउम्र निभाई यारी,
फिर एक बार वही साथी याद आता है।
हर कमी “प्रेम” की जिसने ढका हो हरदम,
मेरी हमनवा है वो जो हरदम याद आता है।
इति।
इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश।