पत्नी का ताना । हास्य कविता। रचनाकार :अरविंद भारद्वाज

पत्नी का ताना- हास्य कविता
आग बबुला होकर पत्नी ने, पति को ताना मारकर कहा
जीवन भर तुम्हारे साथ, केवल दुख और कष्ट सहा
भाग्य फूट गया जब से, शादी करके इस घर आई
पति बेचारा इतना सुनकर, कुछ देर तक चुप रहा
उसने कहा भाग्यवान, आज तुम क्यों चिल्लाई
आस-पड़ौस में भी देखो, आज खामोशी है छाई
महिने भर से तो चुप थी, और तुमने कुछ नहीं कहा
शान्ति बनी रहती घर में, बीबी रहती चुप जहाँ
पूरे महिने घर का राशन, उधार आया है
पड़ौसी दुकानदार का, दस हजार रुपए बकाया है
गाँठ बाँधकर तन्ख्वाह रखते, कंगन सोने के लाए कहाँ
बिन मेकअप रहती मैं दिनभर, अब न जाए मुझसे सहा
लहंगा चुन्नी पहन पडौसन, रोज पार्लर जाती है
नए-नए आभूषण लाकर, मुझे दिखाने आती है
घुट-घुट पीड़ा सहती रहती, कई साल ये मैने सहा
और नही सह पाऊँगी अब, वीराना लगे थे सारा जहाँ
नेक कमाई से अपनी मैं, घर का खर्चा चलाता हूँ
प्रातः काल मैं घर से निकलू, देर रात घर आता हूँ
मात-पिता बच्चों के संग मैं, साला- साला-साली रहते यहाँ
ताने सुनता बीबी के मैं, मुझको बताओ जाऊँ कहाँ
देख के कंगन गैरों के, चैन नहीं तुम्हें खोना है
देख चमक गैरो की तुमकों, फूट-फूट नहीं रोना है
अपनी कमाई से ही भरेगा, लालच का नही जगत यहाँ
अरविन्द कहता प्रेम जहां पर, घर भी मन्दिर लगता वहाँ
© अरविन्द भारद्वाज